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यात्रा

  • Writer: Vishwa
    Vishwa
  • May 3, 2019
  • 8 min read

On the way to Kailash, near Dharchula.
A remote trek in Uttarakhand; Kumaon Mountains

यात्रा


यात्राएँ जीवन पर्यंत चलती रहती हैं, अगर कहा जाये कि जीवन अपने आप में एक यात्रा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी | हम सब अपने जीवन में यात्राएँ करते रहते हैं, कभी हमारा मन देशाटन का होता है तो कभी किसी सुदूर तीर्थ स्थल की यात्रा करते हैं, वो यात्रा जिसे हम जीवन पर्यन्त करने की सोचते हैं | अगर सच कहा जाये तो जीवन अपने आप में एक तीर्थ यात्रा है |

आजकल जीवन में एक अलग ही उधेड़बुन है हर कोई कहीं न कहीं भाग रहा है, जीवन में सब कुछ है सिवाय ठहराव, स्थिरता और शांति के | आदमी कहीं न कहीं जा रहा है पर जाना कहाँ है, कुछ पता नहीं | बसों में, ट्रेनों में, ऑटो में, मेट्रो में, लोकल में हर कोई भाग रहा है, चिंतित है, चेहरा उदास है, वास्तव में जहाँ जिस काम से जा रहे हैं उसी से भाग रहे हैं पर कोई मंजिल नजर नहीं आ रही है | कुछ लोग तो इसलिए भाग रहे हैं कि कोई विकल्प नहीं है, उन्हें एक दिन का अवकाश भी नसीब नहीं है, जीवन संघर्षों से भरा पड़ा है और जिन्हें है वो भी कहीं न कहीं किन्हीं न किन्ही कारणों से दौड़ – धूप मचा रहे हैं | पर्यटन, घुमक्कड़ी या यात्रा चाहें जो कह लें सब एक प्रकार का देशाटन ही है जिसे वो भी करना चाहता है जिसके पास अवकाश नहीं है, पैसा नहीं है और वो भी करना चाहता है जिसके पास सब है |

यात्राएँ कई तरह की होती हैं और इन्हें लोग कई तरह से करते हैं जैसे कुछ आरामतलब होते हैं इन्हें सब कुछ थाली में परोसा हुआ चाहिए | घर से निकलने से पहले ही ये सब कुछ पक्का कर लेते हैं जैसे जाना कहाँ है, रुकना कहाँ है, कैसे घूमना है, कहाँ खाना है वगैरह – वगैरह | इनकी अधिकांश यात्रा इन्टरनेट पर ही हो जाती है और जो थोड़ी – बहुत बच जाती है वो अनेक कारकों और कारणों पर निर्भर करती है जैसे होटल कैसा है, खाना कैसा है, गाड़ी वाला कैसा है, मौसम कैसा है, सेल्फी खींचने को मिली या नहीं, बीबी – बच्चों को मजा आया या नहीं कुल मिलकर पैसा वसूल हुआ या नहीं |

इनसे अलग कुछ लोग तो गज़ब का समय प्रबंधन करते हैं और उनका पूरा फोकस रास्ता नापने पर ही होता है | ये कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जगह निपटाने वाले होते हैं, मान लीजिये कि दो – तीन दिन का समय है तो ये कम से कम तीन शहर निपटा देंगे, 400 -500 किमी की दूरी तय करेंगे और कम से कम तीस से चालीस जगह बड़े आराम से देख लेंगे | जैसे कि ये बंगलौर में हैं तो दो दिन में बंगलौर – ऊँटी – मैसूर सब निपटा आएंगे, ये गाड़ी हायर करेंगे और लगभग पूरा समय इसी में बैठे रहेंगे, रास्ता नपता रहेगा और बीच – बीच में सेल्फी लेने के अवसर मिलते रहेंगे, वैसे भी फेस बुक में कोई ये नहीं पूछ रहा कि कैसे घूमे, कितने दिनों में घूमे, यहाँ तो बस कमेंट्स और लाइक्स से मतलब होता है | पर जो भी हो इनमे गज़ब का स्टैमिना होता है और इनकी अवलोकन शक्ति भी प्रचंड होती है क्योंकि इतने व्यस्त कार्यक्रम में इन्हें किसी जगह को कवर करने के लिए दो – तीन मिनट ही मिलते हैं और सिर्फ इतनी देर में किसी स्थल को निपटा देना साधारण आदमी के बस की बात तो है नहीं | ये इतनी जल्दी – जल्दी चीजें निपटाते हैं कि क्या देखा और क्या छोड़ा इन्हें खुद पता नहीं रहता है, अगर वापस आने पर कोई ये पूछे कि भई चामुण्डी हिल गए थे तो इनके माथे पर बल पड़ जायेगा | तो कुल मिलाकर बात ये है कि निपटाने में इनका जवाब नहीं |

इनसे उलट कुछ लोग आलसी किस्म के होते हैं ये पड़े और डले रहने पर यकीन करते हैं, अगर ऐसे लोग दोपहर को होटल पहुँचेगे तो स्वभाविक रूप से इतने थक चुके होंगे कि वो पूरा दिन खाने और सोने में व्यतीत होगा | अगले दिन ये आराम से सोकर उठेंगे, 11 बजे तक नाश्ता होगा और फिर ये निकल पड़ेंगे घूमने | ये उस दिन एक –आध जगह ही घूमेंगे और फुर्सत के पलों का पूरा आनंद लेंगे | वास्तव में जगह का और घूमने का आनंद लेना ऐसे लोग ही जानते हैं, घूमते ये भी सब – कुछ हैं पर ठहराव के साथ और कुछ अच्छी यादें लेकर घर लौटते हैं |

घुमक्कड़ों की एक और भी कौम है जो अकेले घूमना पसंद करती है, इनका कोई प्लान नहीं होता क्योंकि ये किसी प्लान – व्लान में यकीन नहीं करते हैं | ये थोड़े अव्यवस्थित से लोग होते हैं, कुछ खोए – खोए और सोए – सोए से जिनकी ऑंखें कुछ ढूँढ रही होती हैं जो जैसे इन्हें भी नहीं पता | ये प्लानिंग के नाम पर ज्यादा से ज्यादा रिजर्वेशन करते हैं और वो भी एकतरफा क्योंकि कब लौटना है ये इन्हें नहीं पता | ये प्रायः रिमोट और कम भीड़ – भाड़ वाली जगहों पर जाना पसंद करते हैं जैसे पर्वत या कोई ट्रेक, जंगल सफारी या कोई सुनसान सा बीच | असल में जिस नए पन और शांति की तलाश इन्हें होती है ये इन्हें ऐसी ही जगहों पर आकर मिलती है पर इन बेचारों को कोई पसंद नहीं करता है और करे भी क्यों ? इनके पास फैमिली तो होती नहीं, ये ज्यादा खर्च भी नहीं करते तो लोकल इकॉनोमी को कोई बल नहीं मिलता |

ऐसे लोग प्रायः पैदल ही घूमना पसंद करते हैं और अगर ज्यादा दूर जाना हो तो सार्वजानिक परिवहन का प्रयोग करते हैं इसलिए टूर और टैक्सी ऑपरेटर के लिए बेकार हैं, खाना चलते फिरते जहाँ मन किया वहाँ खा लेते हैं, और इन बेचारों को बहुत से होटल सिंगल होने के कारण जगह भी नहीं देते, कुल मिलाकर हर कोई इनसे नाराज़ रहता है | इन सब के बाद भी उस जगह ये कुछ नया और यूनीक ढूँढ ही लेते हैं और ये यूनीकनेस कुछ भी हो सकती है जैसे हवा, वहाँ का मौसम या फील जो इन्हें बार – बार वहाँ जाने को प्रेरित करती है | इन्हें फेसबुक और इन्स्टा – विंस्टा ग्राम से ज्यादा सरोकार नहीं होता वैसे ये फोटो खींचने में यकीन करते हैं पर उसे ये अपने परिवार या खास दोस्तों से ही शेयर करते हैं, ऐसे लोग प्रायः लम्बा अवकाश लेते हैं और शांति से रूककर घूमना पसंद करते हैं |

इसी प्रकार जीवन और यात्राएं दोनों चलती रहती हैं और हर कोई इनको करना चाहता है और कोई न कोई बहाना ढूँढ ही लेता है | कई बार तो किस्मत भी व्यक्ति को यात्रा मार्ग पर ले जाती है, प्रभु श्री राम का बहुत समय यात्रा करते ही व्यतीत हुआ और उनसे जुड़ी लगभग सभी महत्वपूर्ण घटनाएँ इसी समय घटित हुईं | पाण्डवों का भी बहुत महत्वपूर्ण समय यात्रा करते ही व्यतीत हुआ | इसलिए ये कहा जा सकता है कि यात्राओं का जीवन में विशेष स्थान है |

यात्राओं को करने के लिए अर्थ उपार्जन करना पड़ता है और इसके लिए भी कई किस्म की यात्राएँ करनी पड़ती हैं, जैसे रोज ट्रेन या बसों में लटकते हुए धक्के खाते जाना, पसीने से लथपथ ऑफिस या कार्यस्थल पहुँचना | कुछ दैनिक यात्री तो 100 – 200 किमी रोज सफ़र करते हैं और ये कष्टदायक सिद्ध होता है, शहरों का जाम, धुआँ, गंदगी और कई बार तो कई – कई गाड़ियाँ बदलना ये आदमी को थका देता है | कुछ लोग तो नसीब वाले होते हैं कि उन्हें एक – आध ऑफ मिलता है पर कुछ को तो वो भी नहीं नसीब होता है, पर इसी आपा – धापी, मानसिक और शारीरिक थकान के कारण हमारा मन कहीं बाहर जाकर कुछ क्षण फुर्सत के व्यतीत करने का होता है जिससे वर्ष में एक – आध बार सुखद यात्राएँ हो पाती हैं |

इनसे एक किस्म की शांति भी मिलती है, थोड़े समय के लिए ही सही आप रोजमर्रा की बातों और चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं, आप बस उस पल में जी रहे होते हैं और हर क्षण का आनंद लेते हैं और यही कारण है कि मन वापस लौटने का नहीं होता | पर आजकल यात्राओं ने भी टूरिज्म का रूप ले लिया है जो हर जगह और हर स्वरुप में उपलब्ध है जैसे इको टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, क्रूज टूरिज्म, हेरिटेज टूरिज्म आदि – आदि | अब आपका फुर्सत का समय भी आपका नहीं रहा ये भी आपको खरीदना पड़ता है और अद्भुत है कि हम इसे प्रसन्नता पूर्वक खरीद रहे हैं, हर चीज बिक रही है और बेची जा रही है | पहाड़ बिकाऊ हैं, नदियाँ बिकाऊ हैं, जंगल बिकाऊ हैं और शहर तो कब के बिक गए |

सबसे बड़ा धंधा तो पैकेज्ड टूर वालों का चल रहा है ये आपको बड़ी कुशलता और निपुड़ता के साथ कम से कम समय में इतना घुमा फिर देता हैं कि आपको पता ही नहीं चलता कि वास्तव में क्या घूमा | जब घर आकर आप वापस वो जहग फोटो में देखते हैं तो आपको समझने में काफी समय लगता है कि वो कौन सी जगह थी, खैर तब तक फेसबुक कमेंट्स से पता चल जाता है, ढेरों लाइक्स से आपका दिन बन जाता है और इस प्रोत्साहन के लिए ये वाकई बधाई का पात्र है |

पर कुछ यात्राएँ खिन्नता भी पैदा करती हैं, जैसे कि अरे यार कहाँ आ गए ! इतनी भीड़ - भाड़; सड़कें, रेस्टोरेंट, बाजार सब भरे | घूमने को भी कुछ खास नहीं, कहीं कोई जगह नहीं और कोई नहीं पूँछ रहा ऊपर से इतनी महंगाई इससे अच्छा तो ये था कि कहीं और चले गए होते | नाम बड़े और दर्शन छोटे, पर यार मेहता जी ने तो कमाल की पिक्स भेजी थीं और बड़ी तारीफ की थी पर यहाँ तो जहाँ देखो वहाँ बस अफरातफरी मची है, बिल्कुल बेकार जगह है |

अब भई इन्हें कौन बताए कि जगह बेकार नहीं होती पर हम उसे बेकार बना देते हैं | हम हर जगह फैमिली और बच्चे - कच्चे लेकर चल देते हैं, फिर चाहें वो उत्तराखंड के दुर्गम स्थलों में स्थित मंदिर ही क्यों न हों | हम बिल्कुल पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र की चिंता नहीं करते बल्कि हमारे लिए तो इनका कोई महत्त्व ही नहीं है | हमारे लिए तो हमारी सुख - सुविधा ही सबसे बढ़कर है फिर चाहें हेलीकाप्टर से ही जाना क्यों न पड़े पर जायेंगे जरूर | अब जब इतनी भीड़ ऐसी जगहों पर जाएगी तो वहां स्वभाविक रूप से व्यापर की संभावनाएं बढेंगी, हरियाली नष्ट होगी, प्रदूषण बढेगा, जगह की सुन्दरता नष्ट हो जाएगी और फिर हमें मजा नहीं आयेगा | तो जाना कहाँ है और किसके साथ जाना है इस पर गंभीर विचार अत्यंत आवश्यक है तभी वास्तव में आपकी यात्रा फलदायी सिद्ध होगी अन्यथा वो पर्यावरण पर बहुत बड़ा बोझ बन कर रह जाएगी |

यात्रा से वापसी पर कुछ दिन प्रसन्नता रहती है और फिर वापस वही खिन्नता घेर लेती है लगने लगता है की कहाँ आ गए, और यही परेशानी, उदासी या बेचैनी आपको अगली यात्रा के लिए प्रेरित करती है | यात्राएँ ऐसी होती हैं कि लगता है ख़त्म ही न हों सारा जीवन यूँ ही बेफिक्री में निकल जाये, और ये चाह हर व्यक्ति में होती है और शायद इसी बेफिक्री की चाह में साधु – संत जीवन पर्यंत घूमते रहते हैं, पर सोचिए कैसा हो कि ये बेफिक्री आपको भी रोज नसीब हो ? पर आजकल के जीवन में ऐसा होना संभव नहीं लगता और इसीलिए आदमी योग और ध्यान का सहारा लेता है जिससे संतुलन बना रहे |

तो घूमिये, यात्राओं का मजा लीजिये और हर क्षण का आनंद लीजिये, क्योंकि थोड़े ही समय के लिए सही ये आपको उर्जा और उमंग से भर देती हैं, और हाँ जब तक अगली यात्रा का प्लान न बने तब तक फेसबुक पर लाइक्स - कमेंट्स कर दूसरों का हौसला जरूर बढ़ाते रहें |

 
 
 

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I am Sirkha Cow....

lost..in Himalayas....

 

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