रणथम्बोर
रणथम्बोर राजस्थान के सवाई माधोपुर में स्थित है और ये नेशनल पार्क भारत के प्रमुख टाइगर रिज़र्व में से एक है | पार्क लगभग 300 वर्ग किमी में फैला है और एक पठार पर स्थित है जिसके एक ओर उत्तर में बनास और दक्षिण में चम्बल नदी बहती है और पार्क के बीचों बीच रणथम्बोर का किला है जो यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट है |
सवाई माधोपुर, जयपुर से 140 किमी दक्षिण पूर्व तथा कोटा से 110 किमी उत्तर पूर्व में है और यहाँ लगभग सभी प्रमुख गाड़ियों का स्टॉप है | आज से लगभग पाँच वर्ष पूर्व मैं यहाँ आया था, पर तब से इस शहर में बहुत बदलाव हो चुका है | एक नया शिल्प ग्राम बस गया है और फारेस्ट ऑफिस भी वहीँ शिफ्ट हो गया है इसके साथ ही बहुत से नए होटल भी खुल गए हैं | इस बार फरवरी में अचानक प्लान बना वो भी होली के ठीक पहले और मैं 28 को पश्चिम एक्सप्रेस से रात 10 बजे सवाई माधोपुर पहुँच गया |
यहाँ आने से पहले ऑनलाइन सफारी बुक कर ली थी, जोन 3 में टाइगर दिखने की सबसे अधिक सम्भावना रहती है तो मैंने यही जोन बुक की | मेरी किस्मत ने भी साथ दिया क्योंकि ये जोन महीनों पहले बुक हो जाती है, और जिप्सियां सारी बुक भी हो गयी थीं पर कैंटर में एक जगह थी जो मुझे मिल गयी |
यहाँ के सारे प्रमुख होटल्स रणथम्बोर रोड पर ही हैं, पार्क स्टेशन से 12 किमी है और रोड के दोनों ओर हर प्रकार के होटल्स हैं | होटल मैंने पहले ही बुक कर लिया था और अपनी टिकट मेल कर दी थी, जिससे एंट्री पास फारेस्ट बुकिंग ऑफिस से होटल मैनेजर ने निकलवा लिया| असल में बुकिंग ऑफिस स्टेशन से 6 किमी मेन रोड से थोड़ा हटकर है और आपके पास दो विकल्प होते हैं, अगर आपकी सफारी सुबह की है जिसका समय 6-6:30 का है तो उसी दिन सुबह 5 या एक शाम पहले पास निकलवा सकते हैं इसके लिए आपको पहले फारेस्ट बुकिंग ऑफिस जाना पड़ेगा| शाम की सफारी 2:30 की है और उसी दिन 12 से 2 के बीच पास ले सकते हैं पर अगर आपने पहले ही होटल बुक कर लिया है तो ये बहुत आसान हो जाता है| आपको अपना टिकट और एक आई डी प्रूफ होटल को मेल करना है और कैंटर या जिप्सी आपको आपके होटल से ही पिक कर लेती है और सफारी के बाद होटल में ही ड्राप कर देती है |
मेरा होटल स्टेशन से 2 किमी दूर मुख्य रणथम्बोर रोड पर ही था, ऑटो ने 10 मिनट लिया और मैं साढ़े दस बजे होटल पहुँच गया, खाना खाया और सुबह पाँच का अलार्म लगा कर सो गया | सुबह साढ़े छह बजे तक रेडी हो गया, 5 मिनट बाद ही कैंटर आ गया और 15 मिनट में हम सफारी के मुख्य गेट पहुँच गए | हल्का पहाड़ी और पठारी छेत्र होने के कारण हवा ठण्डी है और कैंटर थोड़ी देर में ही मुख्य सड़क को छोड़कर, घुमावदार और कच्ची जंगल की सड़कों पर मुड़ गया |
पार्क में 10 जोन हैं और इसके बीचों बीच से फोर्ट के लिए सड़क जाती है जो कि पब्लिक रोड है और कई बार इस पर भी जंगली जानवर आ जाते हैं, फोर्ट प्रवेश द्वार से 5 किमी है और लगभग 500 फीट की ऊँचाई पर है | वैसे तो सभी 10 ज़ोन में टाइगर हैं पर इनका दिखना पूरी तरह से भाग्य पर निर्भर करता है| जोन 3 और 4 में दिखने के अधिक अवसर हैं और इनमे से भी जोन 3 सबसे ज्यादा आकर्षक है | जोन 3 के ज्यादा पापुलर होने के अपने कारण हैं जैसे बहुत सी झीलों का होना, इनमे से मुख्य हैं; पदम् तालाब, राज बाग और मलिक तालाब | इसके अलावा फोर्ट के निकट होने से इसका आकर्षण और भी बढ़ जाता है | जंगल में घुसते ही बहुत से चीतल दिखने शुरू हो जाते हैं, ये हिरण की ही एक किस्म है और यहाँ इनकी बहुतायत है इसके अलावा इनकी एक और किस्म सांबर भी यहाँ बड़ी संख्या में पायी जाती है |
कहीं जंगल बहुत घना है तो कहीं दूर तक फैले मैदान और बीच में पहाड़ और पठार इसे अलग ही छटा प्रदान करते हैं | पतझड़ का मौसम होने के कारण पूरा पार्क पीले रंग में रंगा है और कुछ समय बाद उगते सूरज ने इसमें नारंगी रंग भर दिया | मोर, लंगूर, किंगफ़िशर, बुलबुल, चीतल, सांबर आदि के झुंड से होता हुआ कैंटर थोड़ी देर बाद पद्म तालाब के पास पहुँच गया | पद्म तालाब शेरों का पसंदीदा स्थान है और गर्मी के समय आप को आसानी से इसके आस पास शेर, तेंदुए, लोमड़ी, भालू और दूसरे जंगली जीव दिख जाएंगे | जब हम इसके पास पहुँचे तो हमें विचरते हिरण और पानी में लेटा मगरमच्छ दिखा पर शेर नहीं |
इसी से लगा हुआ है जोगी महल जो कभी महाराजाओं की आरामगाह हुआ करता था और बाद में इसे फारेस्ट रेस्ट हाउस में बदल दिया गया था, भारत का दूसरा सबसे बड़ा वट वृक्ष भी यहीं है और यहाँ हल्के फुल्के नाश्ते और टॉयलेट आदि की व्यवस्था है| अब इसे टूरिस्टों के लिए बंद कर दिया गया है |
जगह जगह फैले पुराने महल और किले के खँडहर इस नेशनल पार्क को भारत के अन्य पार्कों से अलग करते हैं, इनमें से बहुतों में अभी जंगली जानवरों ने अपना अड्डा बनाया हुआ है और कभी कभी यहाँ शेर भी आराम फरमाते दिख जाते हैं |
अब तक हमें पार्क में 2 घंटे हो चुके थे, और हम वापस उसी मार्ग से लौट रहे थे, गाइड और आंकड़ो के हिसाब से इस जोन में 3 से 4 शेर होने चाहिए पर अभी तक शेर खान के दर्शन नहीं हुए थे| कैंटर में मैं अकेला भारतीय था और साथ बैठे विदेशी शैलानी भी निराश होने लगे थे| गाइड बीच – बीच में दूरबीन से इधर उधर देख रहा था और किसी कॉल को सुनने का प्रयास कर रहा था | जंगल में शेर दिखने से आस - पास लंगूर आदि सतर्क हो जाते हैं और चिल्ला कर बाकी जीवों को सचेत कर देते हैं | पर अभी तक कोई ऐसी कॉल नहीं हुई थी, जाते और लौटते दूसरी जिप्सी और कैंटर वालों को भी कोई संकेत नहीं मिला था |
जंगल में शांति थी और हम लगभग लगभग जोन से बाहर निकलने ही वाले थे कि गाइड ने एक अजीब सी आवाज लगाई और आगे निकल चुके कैंटर – जिप्सी वापस मुड़ने लगे, कुछ ही सेकंड में सामने से आता हुआ एक शानदार बाघ नज़र आया |
आने जाने वाले वाहनों से अनजान, निर्भीक ये बस अपनी राह बढ़ा चला जा रहा था, और कैंटर से बस 2 फीट की दूरी से गुज़रा | लोगों में तो फोटो लेने की जैसे होड़ सी मच गयी, ये बिल्कुल सामने आकर कुछ सेकंड रुका फिर कच्ची सड़क पारकर बैठ गया | गाइड ने बताया कि ये एक शेरनी है जिसने 15 दिन पहले ही दो शावकों को जन्म दिया है और ये शिकार की तलाश में बाहर आयी है | शावक जन्म देने के कुछ समय तक शेरनी बच्चों के आस पास ही रहती है और प्राय: तीन से चार हफ़्तों के बाद ही बाहर निकलती है पर शायद आस पास शिकार न होने के कारण इसे शावकों से दूर आना पड़ा |
रॉयल बंगाल टाइगर को वैसे तो बहुत बार चिड़ियाघर में देखा है पर इस प्रकार इन्हें इनके प्राकृतिक माहौल में विचरते देखने का एक अलग ही रोमांच है और ये बस आपको ऐसे ही किसी पार्क में आकर मिल सकता है |
कुछ समय तक ये शानदार जानवर यूँ ही बैठा रहा और लोगों ने जमकर फोटो लीं और फिर ये उठकर आगे बढ़ गया और देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गया | बाघ की इस एक झलक ने थोड़ी देर पहले उपजे निराशा के माहौल को एकदम उल्लास और उमंग में भर दिया और लोग ख़ुशी ख़ुशी अपने गंतव्य को वापस पहुंचे | लौटते समय कैंटर एक एक कर सबको उनके होटल के सामने ड्राप करता हुआ चला गया, वापस होटल आकर मैंने नाश्ता किया और फिर फोर्ट जाने के लिए निकल पड़ा |
स्टेशन से फोर्ट के लिए शेयर्ड जीप चलती हैं जो इसी रोड से गुज़रती हैं, कुछ देर इंतज़ार के बाद एक जीप में बैठने की जगह मिली और मैं वापस उसी मार्ग पर चल पड़ा | नेशनल पार्क के गेट से जीप आगे बढ़ी और मेन रोड से होती हुई सीधी फोर्ट के प्रवेश द्वार पर रुकी |
फोर्ट मैं पिछली बार भी आया था और इसका एक कारण यहाँ का प्रसिद्ध श्री गणेश मंदिर है | मंदिर लगभग एक हजार साल पुराना है और गणेश जी की प्रतिमा स्वयंभू है | इसके साथ ही साथ ये दुनिया का एक मात्र त्रिनेत्र गणेश मंदिर है जहाँ गणेश जी अपने पूरे परिवार रिद्धि – सिद्धि और पुत्र शुभ – लाभ के साथ विराजते हैं |
फोर्ट में फिलहाल लंगूरों का शासन है और टॉप तक के 20-25 मिनट के रास्ते में ये हर जगह मौजूद हैं | फोर्ट में चढ़ते हुए कई जगहों से आपको इस पार्क का शानदार नजारा मिलता है और कई किमी दूर तक के इलाके के सुंदर दर्शन होते हैं | पद्म तालाब, जोगी महल दूर तक फैले पहाड़ और पठार और चारों ओर पसरा घना जंगल, अगर आप इस पार्क में सफारी पर आयें तो फोर्ट जरूर आयें | लंगूरों की एक विशेषता है इनका कम उत्पाती होना, बन्दर जहाँ जबर्दस्त उत्पाती होते हैं वहीँ लंगूर काफी संयत प्रकृति के होते हैं और आपके हाथ से कुछ छीना – झपटी नहीं करते हैं | आज बुद्धवार है, ये गणेश जी का दिन है और फोर्ट और मंदिर परिसर में ठीक ठाक भीड़ है | बाहर प्रसाद लेकर मंदिर परिसर में प्रवेश किया, अभी आरती चल रही है और भोग लगाया जा रहा है | ज्यादा बड़ी लाइन नहीं है और सब मिलाकर 20-25 लोग हैं, परिसर ठीक ठाक बड़ा है इसलिए कोई समस्या नहीं होती है | 5 मिनट बाद ही दर्शन शुरू हो जाते हैं और बाबा की भव्य प्रतिमा के दर्शन होते हैं, बाबा पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं | दर्शन कर सामने बैठने का स्थान है जहाँ आप आराम से पूजा आरती कर सकते हैं, कुछ समय शांति से भगवान के दरबार में बिताने के बाद मैं बाहर आया और थोड़ी ही दूर पर स्थित प्राचीन काली मंदिर के दर्शनों के लिए निकल पड़ा |
माता के दर्शनों के उपरांत कुछ दूर आगे भगवान लक्ष्मी – नारायण मंदिर में दर्शन किये और थोड़ा फोर्ट घूमा | वैसे तो ये जगह अब लगभग खँडहर हो चुकी है पर इसका अपना आकर्षण है और जो नज़ारे आपको यहाँ से मिलते हैं वो अविस्मरणीय हैं | ये एक यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है | कुछ समय यहाँ वहां घूमने के बाद मैं वापस नीचे आ गया, जीप पकड़कर होटल आया और खाना खाकर सो गया | मेरी वापसी की ट्रेन साढ़े चार बजे की थी और इस बार मैं स्टेशन वापस पैदल ही चहल कदमी करते पहुँच गया |
वैसे यहाँ हेंडीक्राफ्ट की बहुत दुकाने हैं और अभी एक नया हेंडीक्राफ्ट विलेज ही बसाया गया है जो फारेस्ट बुकिंग ऑफिस के पास ही है तो आप वहाँ भी जा सकते हैं |
चम्बल और बनास के बीच में बसे इस शहर में एक अलग ही राजपुताना आकर्षण है, वैसे तो यहाँ और कुछ घूमने के लिए नहीं है पर सफारी और फोर्ट अपने आप में एक अनुभव है जो आपको यहाँ आकर ही मिल सकता है और राजस्थानी संस्कृति की जो झलक मिलती है सो अलग |
कैसे आयें – जयपुर 140 किमी, कोटा 110 किमी | दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों से यहाँ के लिए सीधी ट्रेन है | निकटतम हवाई अड्डा – जयपुर |
तापमान और मौसम – पार्क मानसून छोड़कर अक्टूबर से मई तक खुला रहता है | अगर सर्दी के समय जाएँ तो शाम की सफारी प्लान करें और गर्मियों के समय सुबह की |
तापमान सर्दियों में 5-25 डिग्री, गर्मियों में 30-45 डिग्री |
जिप्सी जोन 3-4





राजबाग ताल और शेरनी



अत्यंत प्राचीन और विशाल वट वृक्ष
